मीडिया संस्थानों की संवेदनशीलता और पत्रकारों को आर्थिक सहायता : कोरोना के सन्दर्भ में
डॉ. विनीत उत्पल
कोरोना काल में पत्रकार अजीब द्वंद्व
में स्वास्थ्य संबंधी समाचारों को रिपोर्टिंग करते रहे हैं. जीवन और मृत्यु को
नजदीक से देखते रहे हैं, दूसरों के संघर्ष को देखते रहे हैं और और खुद भी संघर्ष करते रहे
हैं. वे आम जनता के दुःख-दर्द को, अस्पताल की कुव्यवस्था को, मरीजों की दिक्कतों
को, ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी को, अस्पताल में न मिलने वाले बेड आदि तमाम परेशानियों को लगातार उजागर
करते रहे हैं. कोरोना ने किस तरह लाखों हँसते-खेलते परिवार को उजारा और उन
परिवारों पर क्या बीती, कहाँ से सहायता मिली, समाज की क्या भूमिका रही, स्वयंसेवी संस्थानों की क्या भूमिका
रही, आदि को भी बखूबी पत्रकारों ने कवर किया. किसी की मौत के बाद, किस तरह से
सरकार, इंश्योरेंस कंपनी, स्वयंसेवी
संस्थानों ने सहायता की, इन बातों को भी मीडिया में खूब कवरेज मिला.
दूसरी ओर, अपनी बिरादरी की कहानी कहने की हिम्मत
शायद ही किसी पत्रकार में नजर आई. मसलन, कोई पत्रकार अपने कर्तव्य पालन के दौरान
कोरोना से संक्रमित हो जाए तो उसके इलाज की क्या व्यवस्था है, उसके परिवार में कोई
संक्रमित हो जाए, तो कहाँ से सहायता मिले, किसी पत्रकार की मृत्य हो जाए तो परिवार
वालों को किस तरह और कहाँ से आर्थिक सहायता मिलेगी, जहाँ वह पत्रकार कार्य कर रहा
है, क्या वह संस्थान आर्थिक सहायता मुहैया करा रहा है या नहीं, संस्थानों में
मानवता या मनुष्यता विद्यमान है या नहीं, आदि. की शायद ही कोई जानकारी मीडिया मी
छाई. कोरोना काल में लोकतंत्र के इस चौथे स्तंभ की स्थिति कैसी रही, सरकार और
मीडिया मालिकों की नजर में पत्रकारों की स्थिति कैसी रही, इस पर विचार करना आवश्यक है.
इसी सन्दर्भ में ‘आजतक डॉट कॉम’ ने 18
मई 2020 को एक खबर प्रकाशित की थी. इस प्रकाशित खबर में प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया
के सदस्य आनंद राणा के हवाले से कहा गया कि देश के 18 राज्य सरकारों ने पत्रकारों
को फ्रंट वारियर्स घोषित किया. विभिन्न राज्य सरकारों ने हेल्थ बीमा के जरिये
पत्रकारों को आर्थिक सहायता भी प्रदान की थी. इसके तहत, हरियाणा सरकार ने पांच से बीस लाख
रुपये की बीमा राशि रखी. ओडिशा सरकार ने पत्रकर के निधन पर 15 लाख रुपए की आर्थिक
मदद, राजस्थान सरकार ने पचास लाख रुपये तक की आर्थिक मदद की घोषणा की. यूपी सरकार की
ओर से भी पांच लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा और कोरोना से मौत पर परिवार को दस लाख
रुपये की आर्थिक मदद देने की घोषणा की गई थी.
कोरोना जैसी बीमारियों से निपटने में
लोगों को आर्थिक रूप से परेशानी का सामना न करना पड़े, इसे देखते हुए सरकार ने लॉकडाउन के बाद कामकाज शुरू करने वाली सभी
कंपनियों के लिए कर्मचारियों को मेडिकल इंश्योरेंस देना जरूरी कर दिया था और यह
तय किया कि अब हर कंपनी को अपने कर्मचारियों को आवश्यक रूप से मेडिकल इंश्योरेंस
देना होगा. इससे पहले संस्थानों को अपने कर्मचारियों को हेल्थ इंश्योरेंस कवर
उपलब्ध कराना अनिवार्य नहीं था. कॉरपोरेट ग्रुप इंश्योरेंस पॉलिसी मुख्य रूप
से कर्मचारी के अस्पताल में भर्ती होने के खर्च को कवर करती है. इसमें उसके
जीवनसाथी या माता-पिता को भी कवर किया जाता है. इसके चलते बीमारी या दुर्घटना में
घायल होने पर आपके इलाज का खर्च इंश्योरेंस कंपनी उठाएगी. बीमा नियामक इंश्योरेंस रेगुलेटरी एंड
डेवलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (इरडा) ने भी इस बारे में सर्कुलर जारी कर कहा कि सभी
औद्योगिक और कमर्शियल प्रतिष्ठानों, दफ्तरों और फैक्ट्रियों को कामकाज शुरू
करने से पहले स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (एसओपी) को अपनाना होगा. सोशल डिस्टेंसिंग
के नियमों का पालन करने के साथ उन्हें सभी कर्मचारियों को मेडिकल इंश्योरेंस
पॉलिसी देना अनिवार्य होगा. सर्कुलर में इरडा ने बीमा कंपनियों से व्यापक हेल्थ
पॉलिसी मुहैया कराने का सुझाव दिया था. इरडा ने कहा कि संस्थानों को मेडिकल इंश्योरेंस
पॉलिसी केवल ताजा स्थितियों को देखते हुए ही नहीं देनी चाहिए बल्कि हमेशा के लिए
यह व्यवस्था करनी चाहिए. उसने इंश्योरेंस कंपनियों को हेल्थ इंश्योरेंस
पॉलिसी को इस तरह बनाने के लिए कहा, जिससे छोटे उद्यमों के बजट में भी इन्हें ले
पाना संभव हो.
कोरोना के कारण बीमार हुए या मृत्यु के
आगोश में समाये पत्रकारों ने इस बात की पोल अवश्य खोल दी कि सरकार ने तो पत्रकारों
को फ्रंट वारियर्स घोषित कर दिया लेकिन मीडिया संस्थाओं ने उनके लिए क्या किया?
दूसरों की जवाबदेही तय करना आसान होता है लेकिन खुद की जवाबदेही तय करना थोडा
मुश्किल. कोरोना के दौर में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ यानी मीडिया की भूमिका किसी से
छिपी नहीं है. दुनिया भर के पत्रकार अपनी जान की बाजी लगाकर रिपोर्टिंग करते रहे.
कई पत्रकार मौत को चुनौती दी तो कई पत्रकार मौत के आगोश में समा गए. बावजूद इसके,
पत्रकार अपना काम करते रहे और समाज को कोरोना के प्रति सजग करते रहे. और जब बीमार
हुए तो न तो उन्हें आसानी से बेड मिला और न ही काल के गाल में समाने पर उनके
परिवार वालों को कोई आर्थिक सहायता देने वाला उनका संस्थान ही मिला.
कोरोना काल में भारत के मुट्ठी भर
मीडिया संस्थान ही अपने पत्रकारों और उनके परिवार की सहायता के लिए खुलकर सामने
आये. उन्होंने सार्वजानिक तौर पर घोषणा की कि वे इस विपरीत परिस्थिति में अपने सभी
कर्मचारियों के साथ हैं. किसी कर्मचारी के बीमार पड़ने से लेकर उनके निधन के बाद भी
संस्थान उनके परिवार के साथ है. उनके परिवार के रहने-खाने से लेकर बच्चों की पढ़ाई
तक का भार संस्थान वहन करेगा. सोशल मीडिया से लेकर तमाम मीडिया प्लेटफार्म पर जिन
मीडिया संस्थानों के इस कदम को सराहा गया, वे हैं दैनिक भास्कर समूह, लोकमत मीडिया समूह और रिलायंस
इंडस्ट्रीज.
दैनिक भास्कर समूह की ओर से सुधीर
अग्रवाल,
गिरीश अग्रवाल और पवन अग्रवाल के नाम से जो पत्र अपने कर्मचारियों के बीच जारी
किया गया, उसमें कहा गया कि पिछले कुछ समय में स्कर परिवार के कुछ साथी इस महामारी
की वजह से अब हमारे बीच नहीं हैं. उनके निधन से उनके परिवार और भास्कर परिवार में
जो रिक्तता आई है, उसे भरना संभव नहीं है. भास्कर समूह के मालिक ने यह घोषणा की कि
कोरोना की वजह से जो साथी हमारे बीच नहीं रहे हैं, उनके परिजनों को निम्न सहायता
राशि उपलब्ध होगी-
1. भास्कर परिवार ने निर्णय लिया है कि
दिवंगत साथी की मासिक सैलरी की राशि या 30,000 रुपए प्रति माह (इनमें से जो भी कम
हो), उनके परिजनों को अगले एक साल तक मिलती रहेगी. यह बेनिफिट कंपनी के द्वारा
उपलब्ध कराया जायेगा.
2. जीटीएलआई इंश्योरेंस, जिसमें
इंश्योरेंस कंपनी की और से लगभग 48 महीने के सैलरी के बराबर राशि मिलेगी.
3. बिरिवमेंट फंड से लगभग सात लाख रुपए,
जिसमें भास्कर के साथी व कंपनी मिलकर कंट्रीब्यूट करते हैं.
4. पीएफ (भविष्य निधि) की राशि. इसके अलावा,
ईडीएलआई के तहत 35 महीने तक की बेसिक सैलरी (अधिकतम सात लाख रुपए तक) मिलती है.
5. ग्रेच्युटी की राशि.
6. फुल एंड फाइनल सेटेलमेंट की राशि.
वहीं, लोकमत मीडिया प्राइवेट कंपनी के एक्जीक्यूटिव
डायरेक्टर और एडिटोरियल डायरेक्टर करण दर्डा ने अपने सभी कर्मचारियों को लिखा कि
1. यदि किसी की मृत्यु कोविड के करण हुई
है तो उनके परिवार वालों को दस लाख रुपये तक की रकम महैया कराई जायेगी.
2. साथ ही, अगले दो वर्ष तक के लिए
संस्थान ने अपने वरिष्ठ कर्मचारियों को उनके परिवार वालों को सपोर्ट करने की
जिम्मेदारी सौंपी है.
3. कोविड-19 के लिए अपने कर्मचारियों को
सपोर्ट कंपनी के द्वार्रा संचालित लोकमत केयर्स (कोविड असिस्टेंट रिलीफ एंड
सपोर्ट) करेगा.
कोविड-19 की आक्रामकता को देखते हुए
रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) ने अपने कर्मचारियों के लिए आर्थिक सहायता प्रदान
करने की घोषणा की. इसके तहत,
1. यदि किसी कर्मचारी की मृत्यु कोरोना से
होती है तो उनके परिवार वालों को पांच वर्षों तक वेतन दिया जाएगा.
2. साथ ही ‘रिलायंस सपोर्ट एंड वेलफेयर
स्कीम’ के तहत उनके बच्चों को स्नातक करने तक की शिक्षा, हॉस्टल आदि में रहने का
खर्च, पुस्तकें आदि भी दी जायेगी.
3. यदि किसी को आवश्यकता पड़ी तो तीन महीने
के ब्याज मुक्त एडवांस सैलरी भी मुहैया कराई जायेगी.
4. साथ ही, उनके पति/पत्नी, माता-पिता और बच्चों
को अस्पताल में इलाज के लिए सौ फीसदी प्रीमियम का भुगतान करने की बात भी कही गई.
5. यदि कोई कर्मचारी या उसके परिवार में
किसी को कोरोना हो जाता है तो उसके शारीरिक या मानसिक रिकवरी करने तक विशेष अवकाश
प्रदान किया जायेगा.
6. करीब 10 लाख रुपये तक प्रभावित
कर्मचारियों के परिवारों को दिया जायेगा.
गौरतलब है कि रिलायंस इंडस्ट्रीज
(आरआईएल) के पास नेटवर्क18 मीडिया एंड इन्वेस्टमेंट लिमिटेड का मालिकाना हक़ है. यह
कंपनी टीवी 18 ब्रॉडकास्ट, वेब 18 सॉफ्टवेयर सर्विसेज, नेटवर्क18 पब्लिशिंग, न्यूज़18, ईटीवी, सीएनबीसी चैनल के आलावा
फोर्ब्स इंडिया, ओवरड्राइव जैसी पत्रिका, फर्स्टपोस्ट और मनीकंट्रोल जैसी वेबसाइट
भी संचालित करती हैं. ऐसे में रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) के द्वारा कोरोना काल
को लेकर की गई तमाम घोषणा वहां कार्यरत सभी पत्रकारों पर भी लागू होती है. जाहिर-सी
बात है कि इन संस्थानों के आगे आने से सभी कर्मचारियों के बीच मनोबल बढ़ा और
उन्होंने जमकर काम किया. इससे कोरोना काल में भी इन कंपनियों ने अच्छी तरक्की की.
ऐसा नहीं हैं कि इन तीनों संस्थानों ने
ही अपने कर्मचारियों के लिए आर्थिक सहायता की पैकेज की घोषणा की. मनीकंट्रोल डॉट
कॉम में 13 मई, 2021 को प्रकाशित समाचार के मुताबिक तमाम गैर-मीडिया कंपनियां अपनी
एचआर पालिसी में बदलाव कर रही हैं. टीसीएस
ने अपने कर्मचारियों को आश्वासन दिया कि यदि कोविड-19 से किसी का निधन होता है तो
उनके परिवार वालों को 23 लाख रुपये तक की रकम दी जायेगी, मुथुट फाइनेंस ने भी अपने
कर्मचारियों को 24 महीने का मासिक वेतन उनके आश्रितों को देने की बात कही. एचसीएल
टेक्नोलॉजी के बारे में टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने खबर प्रकाशित की कि 30 लाख रुपये की
बीमा, सात लाख रुपये कर्मचारियों का जमा से जुड़ा बीमा और मृतक कर्मचारियों के
वार्षिक वेतन के बराबर राशि दी जायेगी. टाटा स्टील ने भी कोविड-19 से पीड़ित
कर्मचारियों को उनके अवकाश ग्रहण करने की उम्र यानी 60 वर्ष तक मेडिकल और आवासीय सुविधाएँ उनके
परिवार वालों को देने की घोषणा की. उनके बच्चों की शिक्षा खर्च वहन करने की बात भी
कही. गिलास बनाने वाली कंपनी बोरोसिल, ओवाईओ, मारुति सुजुकी, लार्सन एंड टुब्रो,
सोनालिका ट्रैक्टर जैसी कंपनियों ने भी अपने कर्मचारियों को भरपूर सहायता प्रदान
की.
ऐसे में जब तमाम संस्थाएं अपने
कर्मचारियों के स्वास्थ्य और उनके परिवार को लेकर चिंताएं जाहिर कर रही हैं तो फिर
मीडिया संस्थानों की चुप्पी लोकतंत्र के लिए घातक है. माना जा रहा है कि भारत में
तीन सौ से अधिक पत्रकारों की मौत कोरोना के कारण हुई. बावजूद इसके उनके स्वास्थ्य,
उनके परिवार और उनके कार्य करने के तरीके पर अधिकतर मीडिया संस्थाओं ने कोई सुध
नहीं ली. ‘वर्क फ्रॉम होम’ के तरीके अपनाए तो गए लेकिन कहीं सैलरी कटौती, तो कहीं
कर्मचारियों का निष्कासन मीडिया हाउस में चलता रहा. ‘वर्क फ्रॉम होम’ के नाम पर
कार्य करने की अवधि में इजाफा कर दिया गया. सुचारू रूप से पत्रकारों के घरों में
इंटरनेट चले, इसकी व्यवस्था भी मीडिया संस्थानों ने नहीं की. तमाम छोटे-बड़े समाचार
पत्रों का प्रकाशन भी बंद हुआ.
कोरोना के दूसरी लहर ने पत्रकारों की
एक और नाजुक स्थिति को सामने लाया, जब वे अपने सोशल मीडिया के माध्यम से अस्पताल
के बेड से लेकर ऑक्सीजन की लीड तक लोगों को मुहैया करा रहे थे. तम राजनीतिक दलों
के नेता और मंत्री भी इस मुहीम में जुड़े थे. लेकिन सवाल यह है कि यदि अस्पताल में
बेड नहीं था तो फिर मंत्री की सिफारिश से बेड कैसे मिल जाता था. जाहिर-सी बात है
कि स्वास्थ्य सेवा प्रबंधन में कहीं न कही खामियां तो थीं लेकिन सिस्टम की इन
खामियों की ओर शायद ही पत्रकारों ने उजागर किया. उन्होंने जितनी ताकत लीड खोजने
में की, यदि उतनी ताकत मेडिकल सिस्टम को ठीक करने में लगाते तो देश की तस्वीर कुछ
और होती. यही करना है कि इसका खामियाजा आम
लोगों के साथ-साथ मीडियाकर्मियों को भी भुगतना पड़ा
बहरहाल, यदि गैर-मीडिया कंपनी अपने कर्मचारियों
को सुविधा मुहैया करा सकती है, उनके परिवार के लिए पैकेज की घोषणा कर सकती है तो
मीडिया घराने क्यों नहीं यह कदम उठा सकते हैं. तमाम पत्रकारों, संपादकों, मीडिया
मालिकों के साथ सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि जो पत्रकार अपनी जान की बाजी
गंवाकर आम लोगों तक सूचनाएं और जानकारियां पहुंचा रहे हैं. उनके लिए कुछ सुनिश्चित
कदम उठायें जाएँ. उन्हें स्वास्थ्य बीमा सहित कोरोना से जान गंवाने पर उनके परिवार
को आर्थिक सुविधा मुहैया कराई जाय. उनके बच्चों को पढ़ाई की सुविधा मिले. तभी
लोकतंत्र का चौथा खम्भा अपनी भूमिका सही ढंग से निभा सकेगा.
संदर्भ:
https://fortune.com/2021/05/26/corporate-india-covid-compensation-tata-oyo-borsi/
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