10/01/2022

स्व-नियमन नहीं होगा तो परेशानी बढ़ेगी

स्व-नियमन नहीं होगा तो परेशानी बढ़ेगी

डॉ. विनीत उत्पल

भारतीय मीडिया यदि स्व-नियमन नहीं करेगा और अपने लिए बनाए गए गाइडलाइन का कड़ाई से पालन नहीं करेगा तो दूसरे तंत्र उसके कार्य और कार्य-पद्धति को नियंत्रित करेंगे। टीवी चैनलों के डिबेट में लगातार हेट स्पीच का प्रसारण हो रहा है और इस पर कार्यक्रम के एंकर का कोई नियंत्रण नहीं होता। समाचार चैनल के एंकर और पैनल में बैठे लोग हेट स्पीच का सहारा लेकर गाली-गलौज, मार-पीट और दर्शकों को उग्र करने का उपक्रम तक करने लगे रहते हैं। अपने कार्यक्रम के जरिये दर्शकों को उग्र करने के कारण टीवी चैनल को ‘हॉट मीडियम’ कहा गया है।
पिछले दिनों सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय ने टीवी चैनलों का भड़काऊ डिबेट समाज के लिए जहर बताया। याद कीजिये इसी वर्ष जुलाई माह में देश के मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमन्ना ने सार्वजानिक तौर पर कहा था कि मीडिया ट्रायल के कारण न्यायिक स्वतंत्रता बाधित हो रही है। मीडिया पर आए दिन इस तरह की प्रतिक्रिया केवल न्यायालय या सरकार की तरफ से ही नहीं होती, बल्कि आम नागरिक भी इसी तरह की प्रतिक्रिया देता है। मीडिया की रिपोर्टिंग, डिबेट आदि के कारण आम जन में जिस तरह इसकी विश्वसनीयता कम हुई है, इसे लेकिन मीडिया को चिंतित होना होगा। डिजिटल मीडिया में हेट स्पीच को लेकर भारत सरकार ने कानून तो बनाये हैं लेकिन अभी तक टीवी न्यूज़ चैनल पर हेट स्पीच को लेकर कोई पुख्ता कानून नहीं है। हालाँकि हेट स्पीच को लेकर आईपीसी की विभिन्न धारा के तहत मामल दर्ज किया जा सकता है।
जाहिर ही बात है कि टीवी चैनल स्व-नियमन नहीं अपनाएगा तो या तो सर्वोच्च न्यायालय सरकार से संबंधित कानून बनाने के लिए कहेगी या फिर वह खुद विभिन्न मामलों में आदेश देकर समाज में मीडिया की गरिमामय उपस्थिति दर्ज कराएगी। स्व-नियमन की परंपरा 112 वर्ष पुरानी है। सन 1910 में पहली बार अमेरिका में केंसास एडिटोरियल एसोसिएशन ने अपने पत्रकारों के लिए ‘कोड ऑफ़ एथिक्स’ को स्वीकार किया था, जिसे विलियम ई. मिलर ने तैयार किया था। इसके बाद सन 1923 में पत्रकारों के समूह ‘अमेरिकन सोसाइटी ऑफ़ न्यूज़पेपर एडिटर्स’ ने स्व-नियमन को स्वीकार किया था जिसे ‘कैनन ऑफ़ जर्नलिज्म’ कहा जाता है। भारत में पहले प्रिंट मीडिया और कालांतर में टेलीविजन और डिजिटल मीडिया के लिए स्व-नियमन से जुड़ी बातों को स्वीकार किया गया लेकिन अब इसे नए सिरे से सोचने की आवश्यकता है।
गौरतलब है कि नेशनल ब्रॉडकास्टर एसोसिएशन (एनबीए) द्वारा तैयार किये गए आचारसंहिता के खंड एक के ‘मौलिक और बुनियादी सिद्धांत’ के मुताबिक़ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े पेशेवर पत्रकारों को यह स्वीकार करना चाहिए और समझना चाहिए कि वे जनता के विश्वास के पहरेदार हैं और इसलिए उन्हें सत्य की खोज करने और उसे सम्पूर्ण रूप से पूरी आजादी के साथ और निष्पक्षता के साथ लोगों के सामने पेश करना चाहिए। पेशेवर पत्रकारों को अपने द्वारा किए गए कामों के संबंधों में पूरी तरह जवाबदेह भी होना चाहिए।’ वहीं, नेशनल ब्रॉडकास्ट एसोसिएशन (एनबीए) के नौ वर्षों तक कार्य करने के बाद अस्तित्व में आए न्यूज़ ब्राडकास्टिंग एंड डिजिटल स्टैंडर्ड अथॉरिटी (एनबीडीएसए) ने कुछ वर्ष पहले कई टीवी चैनलों को कहा था कि वे कोड ऑफ़ कंडक्ट और गाइडलाइन का उल्लंघन कर रहे हैं। उस वक्त कहा गया था कि ब्रॉडकास्टर की ओर से आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता है और इसे उन एंकरों के खिलाफ उपचारात्मक कार्रवाई/उपाय करना चाहिए जो प्रसारण के दौरान तटस्थ और निष्पक्ष रहने में विफल रहते हैं। इतना ही नहीं, अथॉरिटी ने सुझाव दिया था कि एंकरों को कार्यक्रम या वाद-विवाद का संचालन करने के तरीके के बारे में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
गौरतलब है कि भारत में चार संस्थान, प्रेस कौंसिल ऑफ़ इंडिया, न्यूज़ ब्राडकास्टिंग एंड डिजिटल स्टैंडर्ड अथॉरिटी, ब्राडकास्टिंग कंटेंट कम्प्लेंट्स कौंसिल और न्यूज़ ब्राडकास्टिंग एसोसिएशन मीडिया को नियंत्रित करते हैं। इनमें सिर्फ प्रेस कौंसिल ऑफ़ इंडिया प्रिंट मीडिया से जुड़े मामलों को देखता है और बाकी संस्थान टीवी न्यूज़ चैनलों के जुड़े मामलों की निगरानी करने के साथ-साथ वहां प्रसारण होने वाले कार्यक्रमों की शिकायतों पर कार्रवाई करता है। भले ही इन्हें संविधानिक दर्जा प्राप्त न हो लेकिन ये संस्थाएं विभिन्न मामलों के संज्ञान पर लाए जाने पर टीवी न्यूज़ चैनलों को नोटिस भेजते हैं और उनसे स्पष्टीकरण मांगते हैं। हालाँकि न्यूज़ ब्राडकास्टिंग एंड डिजिटल स्टैंडर्ड अथॉरिटी को टीवी चैनलों की गलती पर जुर्माना करने का प्रावधान है।
नेशनल ब्रॉडकास्ट एसोसिएशन और न्यूज़ ब्राडकास्टिंग एंड डिजिटल स्टैंडर्ड अथॉरिटी के आंकड़े बताते हैं कि 2009 से लेकर 2022 तक उनके पास टीवी न्यूज़ चैनलों के 4499 शिकायतें आईं जिकी सुनवाई की गईं। वर्ष 2009 में 107, 2010 में 36, 2011 में 202, 2012 में 458, 2013 में 902, 2014 में 223, 2015 में 149, 2016 में 193, 2017 में 286, 2018 में 413, 2019 में 465, 2020 में 542, 2021 में 371 और 2022 में अभी तक 152 शिकायतें आई हैं।
सैकड़ों की संख्या में हर वर्ष टीवी न्यूज़ चैनलों के कार्यक्रम, रिपोर्टिंग और कंटेंट को लेकर शिकायत आना, यह सुनिश्चित करता है कि मीडिया तंत्र में कहीं न कही कुछ गड़बड़ है, जिसे ठीक करना आवश्यक है। ऐसे में एनबीए की आचारसंहिता में लिखी हुई यह बात याद रखनी होगी कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का यह मौलिक सिद्धांत है कि कंटेंट यानी विषयवास्तु के मामले में मीडिया को सरकारी नियंत्रण से पूरी तरह मुक्त होना चाहिए क्योंकि सेंसरशिप यानी नियंत्रण और स्वतंत्र अभिव्यक्ति एक-दूसरे के जन्मजात दुश्मन हैं। ऐसे में खासतौर पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए निगरानी के संस्थागत तरीके और सावधानियां ईजाद करने का जिम्मा पूरी तरह पत्रकारिता के पेशे का ही है। ये तरीके ऐसे होने चाहिए, जिनसे वह रास्ता परिभाषित हो सके, जिस पर चलकर संयम और पत्रकारीय नीतियों के उच्चतम मानकों की रचना हो सके और अपने पवित्र संवैधानिक कर्तव्य का निर्वाह करने में जो मीडिया का मार्गदर्शन कर सके।
न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन ने टेलीविजन पत्रकार को भी परिभाषित किया है और कहा है कि इसका अर्थ संपादक, निर्माता, एंकर और/अथवा किसी भी नाम से पुकारा जाने वाला कोई ऐसा व्यक्ति होगा, जो प्रसारण की जाने वाले सामग्री को मंजूरी देने के लिए जिम्मेवार है। ये सभी लोग इस दायरे में शामिल होंगे और अंशकलिक संवाददाता अथवा स्ट्रिंगर भी इसमें शामिल किये जायेंगे। जाहिर है कि इन संस्थानों के नीति-निर्धारक की सोच व्यापक रही और उन्होंने स्व-नियमन के दायरे में टीवी न्यूज़ चैनल से जुड़े सभी जिम्मेदार कर्मचारियों को को शामिल किया।
बहरहाल, तमाम इलेक्ट्रॉनिक न्यूज़ चैनलों को बैठकर नए स्व-नियमन बनाये, समय के अनुसार नई शर्तें जोड़े, एंकर को प्रशिक्षित करे. मीडिया लोगों को संतुलित, निष्पक्ष, वस्तुनिष्ठ कार्यक्रम दिखाए, किसी भी विवादित सार्वजानिक मामले में किसी का पक्ष न ले, सामग्री का चयन अथवा उनकी रचना किसी भी विशेष आस्था, विचार अथवा किसी वर्ग विशेष की इच्छा पूरी करने या उसे बढ़ावा देने के लिए नहीं होना चाहिए. स्व-नियमन को व्यापक बनाये और खुद से पालन करे. हालाँकि उस पर सरकार की ओर से नियंत्रण तो लाजिमी तौर पर नहीं हो सकता, नहीं तो उसकी साख और विश्वसनीयता पर जरूर सवाल खड़ा हो जाएगा.

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