6/28/2009

देश की सबसे अमीर महिला-सावित्री जिंदल

सावित्री जिंदल देश की एकमात्र महिला हैं, जिनका नाम दुनिया की 20 अमीर महिलाओं में शुमार है। फोर्ब्स द्वारा जारी ताजा सूची में वह नौवें स्थान पर हैं। गौरतलब है कि भारत के 40 अमीर लोगों में सावित्री का स्थान 12वां है।

हरियाणा सरकार में राज्यमंत्री सावित्री सिंह ‘जिंदल ग्रुप’ की चेयरपर्सन है और दक्षिणी अमेरिका, चिली, बोलविया और पेरू सहित भारत में कंपनी के 50 प्लांट हैं। करीब छह बिलियन अमेरिकी डॉलर की मालकिन सावित्री के पति आ॓पी जिंदल का निधन 2005 में हेलिकाप्टर दुर्घटना में हो गया था। चार दशक पहले 1952 में उन्होंने हरियाणा के छोटे से शहर हिसार में जिंदल साम्राज्य स्थापित किया था। जिंदल ग्रुप का कारोबार लोहा, स्टील और पावर सेक्टर क्षेत्र में है।

सामान्य और सीधी-साधी दिखने वाली डिप्लोमाधारी सावित्री कुरूक्षेत्र के सांसद नवीन जिंदल की मां हैं। इसके अलावा उनके तीन और बेटे और पांच बेटियां हैं। ग्रुप के तहत जिंदल सॉव लिमिटेड ग्रुप की देखरेख उनका बड़े बेटा पृथ्वीराज जिंदल देख रहे हैं, जबकि विजयनगर स्टील लिमिटेड की निगरानी का जिम्मा दूसरे बेटे सज्जन के हाथों में है। स्टीनलेस लिमिटेड का नियंत्रण तीसरे बेटे रतन जिंदल के पास है और स्टील एंड पावर लिमिटेड की देखरेख नवीन जिंदल कर रहे हैं।

किसान परिवार से आने वाले आ॓पी जिंदल द्वारा स्थापित जिंदल इंडस्ट्रीज का कारोबार इस तरह पूरे देश-विदेश में फैलना लोगों को आश्चर्यचकित करता है। सीधे-साधे आ॓पी जिंदल और उनके परिवार के लोगों का सामान्य जीवन और सरलता लोगों को काफी आकर्षित करता है। सावित्री के पुत्र नवीन ने अपने प्रयास से तिरंगा ध्वज को फहराने का अधिकार आम लोगों को भी दिलाया। असम के तिनसुकिया में 20 मार्च, 1950 को जन्मीं सावित्री को संगीत में काफी रूचि है और उन्होंने ‘प्रभाकर’ की डिग्री ली है। उनकी शिक्षा-दीक्षा तिनसुकिया में ही हुई है। उन्हें पढ़ना, सामाजिक सेवा और खाना बनाना अच्छा लगता है। अपने परिवार और बच्चों के साथ समय बिताने वाली सावित्री को तनिक भी इस बात का घमंड नहीं है कि वह दुनिया की अमीर महिला उघमियों में शुमार हैं। यही कारण है कि हरियाणा सरकार में मंत्री रहने के बावजूद कभी भी लाइमलाइट में नहीं रहती। इतना ही नहीं, अपने बच्चों में भी उन्होंने ऐसे संस्कार दिए हैं कि वे भी तड़क-भड़क से दूर रह कर अपने कारोबार को फैलाने में जुटे रहते हैं। वह हिसार विधानसभा सीट से विधायक है और परिवार के साथ विघा देवी जिंदल स्कूल भी संचालित करती हैं।

6/07/2009

मुर्दाघर

मुर्दाघर
अब हड़ताल नहीं होती
कार्यालयों में, फैक्ट्रियों में
अपनी मांगों को लेकर
किसी भी शहर में

अब धरना-प्रदर्शन नहीं होता
मंत्रालयों या विभागों के सामने
किसी मुआवजे को लेकर
किसी भीड़भाड़ वाली सड़क पर

अब झगडा-फसाद नहीं होता
चौक-चौराहे या नुक्कड़ पर
अपने अधिकार को लेकर
किसी भी मोहल्ले में

तो इसका मतलब यह कि सभी मांगे मान ली गई
तो इसका मतलब यह कि सभी जो मुआवजा मिल गया
तो इसका मतलब यह कि सभी ने अधिकार पा लिया
तो इसका मतलब यह कि सभी मुद्दे ही विलुप्त हो गए

नहीं दोस्त,
जिस परिवार, जिस समाज में
स्त्री की मांगें होती रहेंगी सूनी
वहां कौन-सी मांगे मानी जायेंगी

जिस समाज में, जिस परिवेश में
जनाजे निकलने की होगी जिद
समाज के तथाकथित ठेकेदारों को
वहां कैसे मिलेगा मुआवजा

जिस परिवेश में, जिस देश में
तमाम 'कारों' को लेकर
घुटती रहेंगी स्त्रियाँ, घुटती रहेंगे पुरूष
वहां किसे मिलेगा अधिकार

जिस देश में, जिस दुनिया में
'जाम' के लिए
लुटती रहेगी दुनिया
वहां कैसे सामने आएगा कोई मुद्दा

बहरहाल,
वह देश, देश नहीं
जहाँ मांगों को लेकर
मुआवजे को लेकर
अधिकार को लेकर
मुद्दे को लेकर
आवाज नहीं उठती
छायी रहती खामोशी

वह तो होता है मुर्दाघर.

6/06/2009

अमरीकी मीडिया : क्या हकीकत क्या फंसाना

मंदी के दौर से जहाँ कई देशों ने निजात पाने में कामयाबी हासिल की है और कर रहे हैं वहीं अमरीकी मीडिया को इससे बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है। 24x7 बॉल स्ट्रीट की एक रिपोर्ट के मुताबिक अमरीका में यदि यही स्थिति बनी रही तो पचास बड़े अखबारों में से आठ बंद हो सकता है। रिपोर्ट में दस बड़े अख़बारों की लिस्ट भी जारी की गई हो जो अपने प्रिंट संस्करणों को बंद कर आन लाइन संस्करण प्रकाशित करने की योजना पर कम कर रहे है।

अमरीका की दयनीय स्थिति के बारे में अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले दिनों फिलाडेल्फिया में एक अख़बार समूह ने ख़ुद को दिवालिया घोषित कर दिया। राकी माउन्ट न्यूज बंद हो चुका है और सेन्ट्रल पोस्ट इंटेलीजेंट नामक अख़बार भी बंद होने का कगार पर है । अपने वजूद को बचाने के लिए फिलहाल आन लाइन संस्करण को प्रकाशित करने पर जोर दिया जा रहा है। इसके आलावा सन फ्रांसिस्को क्रानिकल को भी बंद करनेकी बात चल रही है.

फिलडेल्फिया न्यूज पेपर एलएलसी द्वारा निकलने वाला फिलडेल्फिया डेली न्यूज पर भी बैंक घोटाले का आरोप लगा है। कपनी इस साल सिर्फ़ और सिर्फ़ आर्थिक संकट से उबरने पर जोर देगी लेकिन अख़बार में इन दिनों विज्ञापनों में जबरदस्त कमी आयी है और इसकी एक लाख प्रतियाँ हर दिन बिक रही है। इस अख़बार के प्रिंट संस्करण के कर्मचारियों को ऑन लाइन संस्करण में समायोजित किया जा रहा है। मिनेपोलिस स्टार ट्रिब्यून की भी स्थिति भी काफी दयनीय है। २००७ में हुए व्यापर के मुकाबले पिछले साल मुनाफा आधा रहा है। इसके विज्ञापनों में बीस फीसदी की कमी आयी है और तीन लाख प्रतियाँ हर दिन बिक रही जो सिरदर्द का कारण है।

करीब ढाई लाख सर्कुलेशन बाला मियामी हेराल्ड की हालत काफी खस्ता है। रियल स्टेट के विज्ञापनों के नहीं आने के कारण फ्लोरिडा संस्करण की हालत गंभीर है। जबकि मियामी इलाके के आलावा लेतीं अमेरिका और कैरिबियन में ऑन लाइन संस्करण के पाठक कभी हैं। फिलहाल हेराल्ड अंगरेजी और spenish में ही अपना ऑन लाइन संस्करण निकाल रहा है। अमेरीकी आर्थिक मंदी की गिरफ्त में देत्रोइट भी आया है और संभावना जताई जा रहे है कि वह गान्नेत्त के मालिकाना में चल रहे देत्रोइट फ्री प्रेस में समायोजित हो जाए। बास्टन ग्लोब को हर हफ्ते एक मिलियन डालर का घाटा उठाना पड़ रहा है और इसके पर सिर्फ़ बीस मिलियन डालर की पूंजी बची है।

6/01/2009

बच्चों के गुम होने का सवाल

बच्चों के गुम होने का सवाल
जिस तरह पिछले कुछ समय से दुनियाभर में बच्चों के गायब होने के मामले बढ़े हैं, वह काफी चिंता का विषय है। विकासशील देशों से लेकर विकसित देशों में हर साल लाखों की संख्या में बच्चों के गायब होने की घटनाएं सामने आयी हैं। दरअसल भारत, चीन से लेकर अमेरिका तक में बच्चों के सौदागर बसे हुए हैं जो न सिर्फ इनसे भीख मंगवाने का काम कराते हैं बल्कि उन्हें बतौर सेक्स वर्कर का पेशा अपनाने के लिए मजबूर करते हैं।देश की बात करें तो राष्ट्रीय अपराध सूचना केंद्र के मुताबिक, सिर्फ 2007 में दिल्ली के कुल दस जिलों से 5,600 बच्चे गायब हुए।
पिछले माह एक मामले की सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने बाल अधिकार को लेकर बनी समिति को एनसीआर में बच्चों के गायब होने के मामले में तीन महीने के भीतर रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है। इस मामले में हाईकोर्ट के सामने दिल्ली पुलिस ने जो तथ्य पेश किए हैं, उसके मुताबिक जून, 2008 से लेकर जनवरी, 2009 तक राजधानी से कुल 2,210 बच्चे गायब हुए। एक अनुमान के मुताबिक, भारत में हर साल दस लाख बच्चे गायब हो रहे हैं।
2004 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट में कहा गया कि देश में सबसे अधिक बच्चे झारखंड, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश, बिहार और उड़ीसा राज्यों में गुम होते हैं।ऐसा नहीं है कि बच्चों के गुम होने जैसी समस्या से सिर्फ भारत की जूझ रहा है। ब्रिटेन की हालत यह है कि यहां हर साल करीब तेरह हजार बच्चों के लापता होने के मामले सामने आये हैं। चीन में 2000 में हुए जनगणना के दौरान पाया गया कि यहां से करीब 3।7 करोड़ बच्चे गायब हैं। अफ्रीकी देशों की हालत भी इससे इतर नहीं है। 2007 के रिकार्ड बताते हैं कि बेल्जियम में 2928, रोमानिया में 354, फ्रांस में 706 बच्चों के लापता होने के मामले दर्ज कराए गए हैं। जहां तक अमेरिका की बात है, वहां भी बच्चे इससे अछूते नहीं है। अमेरिकी सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक, 2007 में वहां 4,802 बच्चों के गायब होने कर सूचना पुलिस को थी। इतना ही नहीं, 1979 से लेकर 1981 में वहां कई हाई प्रोफाइल बच्चे भी गायब हुए और सालों बाद भी उनका कोई अता-पता नहीं लगा। यही कारण है कि अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने 1983 में लोगों को जागरूक करने के लिए वर्ष में एक बार ‘नेशनल मिसिंग चिल्ड्रेन डे’ मनाने का निर्णय लिया।
गौरतलब है कि ये वे मामले हैं जो विभिन्न देशों की पुलिस ने दर्ज किये हैं। लेकिन भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में अधिकतर मामलों को पुलिस दर्ज ही नहीं करती है और मामला दब कर रह जाता है। बहुत कम ही ऐसे मामले सामने आते हैं जिनमें स्वयंसेवी संस्थाएं रूचि लेकर बच्चों को खोजकर बाहर निकालती हैं। बच्चों के मामले में सबसे दुखद स्थिति यह है कि कई मामलों में उनके मां-बाप ही बच्चों का सौदा करते हैं।
‘बचपन बचाआ॓’ आंदोलन की 2007 की रिपोर्ट के मुताबिक, जानवरों से भी सस्ती दर में बच्चों को बेचा जा रहा है। जहां एक भैंस की कीमत कम से कम पंद्रह हजार रूपए होती है वहीं देश में बच्चों को पांच सौ रूपए से लेकर 25 सौ रूपए में आसानी से बेचा जाता है। दुनिया के विभिन्न कोनों से बच्चों के सिर्फ गायब होने का सवाल नहीं है। बल्कि सवाल है कि जो उम्र खेलने-कूदने की होती है उस उम्र में बच्चों को कहां भेजा जा रहा है। अधिकतर बच्चों से या तो मजदूरी कराई जाती है या सेक्स वर्कर का पेशा कराया जाता है। जिस उम्र में बच्चों को स्कूल जाना चाहिए, उस उम्र में उन्हें भीख मांगने के लिए मजबूर करना तो आम बात है।
भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में बच्चों के गुम होने के मामले इस बात के गवाह हैं कि अधिकतर बच्चे जिंदगी में दोबारा अपने मां-बाप में नहीं मिल पाते हैं। और तो और, मनुष्य की दरिंदगी की हद इस कदर है कि बच्चों के अंगों का कारोबार भी दुनिया में बड़े पैमाने पर चल रहा है और ऐसे में उन्हें मौत के घाट भी उतारा जाता है।
बहरहाल, सिर्फ भारत ही नहीं पूरी दुनिया के सामने मासूमों के गायब होने का मामला एक गंभीर चुनौती है। पुलिस के साथ-साथ आम लोगों को इस मसले पर जगना होगा। स्वयंसेवी संस्थाओं से लेकर प्रशासन को गंभीरता बरतनी होगी, कड़ी से कड़ी नीतियां बनानी होगी। बच्चों को गायब करने के मामले में दोषी पाए जाने पर सख्त से सख्त सजा का प्रावधान हो। किसी भी देश का भविष्य बच्चों पर निर्भर करता है और यदि बच्चे ही नहीं रहेंगे तो फिर उस देश का भविष्य क्या होगा।
साभार : राष्ट्रीय सहारा