6/22/2007

राहुल घुमक्कड़शास्र अंतिम्



घुमक्कड़ को अनादि धर्म मानने वाले राहुल लिखते हैं कि घुमक्कड़ को हर तरह के जंजाल और मोह-माया से दूर होना चाहिये. उसे न तो माता के आंसू बहने कि परवाह करनी चाहिये और न पिता के भय और उदास होने की, साथ ही विवाह में लायी पत्नी के रोने-धोने की फिक्र करनी चाहिये।
राहुल कहते हैं कि जो लोग घुमक्कड़ पसंद करते हैं उन्हें कम से कम मैट्रिक तक की शिखा या फिर स्नातक होना जरुरी है। अंगरेजी, रुसी, फ्रेंच और चीनी भाषाओं को जानने और भूगोल, इतिहास, साहित्य के अलावा दूसरी तमाम जानकारी होनी चाहिऐ.बेहतर घुमक्कड़ होने के लिए फोटोग्राफी और चिकित्सा की जानकारी आवश्यक है। वे डांस के अलावा बजाने और गाने जैसी कलाओं को सीखने की सलाह देते हैं।
राहुल कहते हैं कि लोक कला, लोक संगीत, लोक नृत्य जैसी कला का उद्देश्य पिछड़े लोगों को अक बेहतर समानता पर आधारित समाज का निर्माण की ओर होनी चाहिऐ.वे यायावर जातियों को लेकर कहते हैं कि यदी जीवन में कोई अप्रिय वस्तु है तो वह मृत्यु नहीं बल्कि मृत्यु का भय है।
घुमक्कड़ के प्रेम प्रसंग पर चर्चा करते हुवे राहुल कहते हैं कि प्रेम पाश में फंसने पर उसकी देखभाल लज्जा और संकोच के बल पर ही हो सकती है। जिस व्यक्ति को अपनी, अपने देश और समाज की इज्जत का ख्याल होता है, उसे कभी भी कोई ऐसा कम नहीं करना चाहिये जिससे उसके देश और समाज को लांछन लगे।
घुमक्कड़ को न तो अमरता का लोभ होना चाहिये और न ही हजारों बरस तक लंबे कीर्ति कलेवर की लिप्सा ही।घुमक्कड़ को मृत्यु से कभी भी नहीं डरना चाहिये। उसने तो यहाँ जन्म लिया है कर्त्तव्य और आत्म सृष्टी के लिए. उसे महान से महान उत्सर्ग करने के लिए तैयार रहना चाहिये।
ashvghosh, कालिदास, रविंद्रनाथ, कुमारजीव, दीपंकर जैसे पंडितों और निकोलस रोरिख जैसे घुमक्कड़ कलाकारों का उदाहरण देते हुये राहुल लेखनी और तूलिका पर भी जोर देते हैं.
राहुल यात्रा के दौरान संचित वस्तु को संग्रालय में देने की बात कहते हैं। घुमक्कड़ के लिए डायरी लिखने की बात भी वे करते हैं। साथ ही वे साल दर साल की डायरी को किसी व्यक्ति के पास नहीं बल्कि संस्था के पास रखने का सुझाव देते हैं। उनका मानना था कि व्यक्ति का क्या ठिकाना, न जाने कब चल बसे, फिर उसके बद उत्तराधिकारी इन वस्तुओं का क्या मूल्य समझेंगे.

6/11/2007

राहुल घुमक्कड़ शास्त्र दो




अनोखे अंदाज में अपने तरह की पहली पुस्तक घुमक्कड़ शास्त्र में राहुल लोगों से सवाल करते नजर आते हैं। 'क्या चारल्स डारविन अपने महान अविष्कारों को कर सकता था, यदि उसने घुमक्कड़ का व्रत नहीं लिया होता। कोलंबस और वास्को-डि-गामा भी घुमक्कड़ ही थे।' बुद्ध और महावीर को घुमक्कड़राज कहने वाले राहुल कहते हैं कि दुनिया के अधिकांश धर्मनायक घुमक्कड़ ही थे। शंकराचार्य के बारे में उनका मानना था कि उन्हें किसी ब्रह्म ने शंकर नहीं बनाया, उन्हें बड़ा बनाने वाला था, यही घुमक्कड़ धर्म।

6/10/2007

राहुल सांकृतायन का घुमक्कड़ शास्त्र

राहुल सांकृतायन ने अपनी पोथी में जो बात कही, वह आज भी घुमक्कड़ों के लिए महत्वपूणॆ है। 'अथातो घुमक्कड़ जिग्यासा', 'जंजाल तोडो', 'विद्या और वय', 'स्वावलंबन','शिल्प और कला', 'स्त्री घुमक्कड़', 'धमॆ और घुमक्कड़ी', 'मृत्यु-दशॆन', 'लेखनी और तूलिका', 'निरुद्देश्य' जैसे प्रकरणों के द्वारा राहुल ने घुमक्कड़ों को दिशा और दशा बतलाने का काम किया है। इसके जरिए जहां वे पिछडी और घुमक्कड़ जातियों के बारे में विस्तार से बताते हैं, वहीं प्रेम संबंधों की स्वाभाविकता पर भी बात करते हैं। वे कहते हैं, 'जिन प्रेमिकाऒं को घुमक्कड़ों का अनुभव है, वे जानती ही हैं- परदेश की प्रीत, भुस का तापना। दिया कलेजा फूंक, हुआ नहीं अपना।'राहुल अपने जीवन में जितने देश-विदेश कि यात्रा की, लेखनी साहित्य यात्रा को लेकर भी ुतनी ही चलाई। ुनका सीधा मानना था कि प्राचीन काल में घुमक्कड़ी वृत्ति न होती तो सभ्यता ही रुक-ठहर जाती, ुसका इतिहास नहीं होता। मनुष्य चलता रहा और सभ्यता का इतिहास बनता गया। यायावरी ने जीवन को नई गतिशीलता दी, नए संपकॆ हुए, सभ्यताओं का आदान-प्रदान हुआ और सांस्कृतियों को नया आयाम मिला। ुनकी मान्यता थी कि जब कोई देश यायावरी छोड देता है तो रूक-ठहर जाता है।जारी॰॰॰

घुमक्कड़नामा

घुमक्कड़ों की घुमक्कड़ी को आम लोग भले ही आवारागदीॆ कहें, लेकिन घुमक्कड़ों के लाइन के लोग समाज को काफी हद तक प्रभावित करने में सफल रहे हैं। हर तरह के जंजाल, मोह-माया को तोड कर घुमक्कड़ी की जिंदगी जीने वाले मुट्ठी भर लोगों ने काफी कम समय में ऐसी चीजें सामने परोस दी हैं कि दुनिया को नतमस्रक होना पड़ा है। भारत में बुद्ध अपने समय के सबसे बड़े घुमक्कड़ थे तो संसार के महान घुमक्कड़ चाल्सॆ डरविन के सिद्धांतों और अविष्कारों का लोहा आज भी लोग मानते हैं। जैन तीथॆंकर महावीर, शंकराचायॆ, नानकदेव, स्वामी दयानंद, कोलंबस, वास्को-डि-गामा, अश्वघोष, कालिदास, बाण, दण्डी, रविंद्रनाथ, कुमारजीत, दीपंकर सहित राहुल सांकृतायन घुमक्कड़ों में अहम स्थान रखते हैं। राहुल सांकृतायन ने तो घुमक्कड़ों को लेकर 'घुमक्कड़ शास्त्र' नामक पंद्रह प्रकरणों की पोथी ही रच डाली। जारी॰॰॰