घुमक्कड़ को अनादि धर्म मानने वाले राहुल लिखते हैं कि घुमक्कड़ को हर तरह के जंजाल और मोह-माया से दूर होना चाहिये. उसे न तो माता के आंसू बहने कि परवाह करनी चाहिये और न पिता के भय और उदास होने की, साथ ही विवाह में लायी पत्नी के रोने-धोने की फिक्र करनी चाहिये।
राहुल कहते हैं कि जो लोग घुमक्कड़ पसंद करते हैं उन्हें कम से कम मैट्रिक तक की शिखा या फिर स्नातक होना जरुरी है। अंगरेजी, रुसी, फ्रेंच और चीनी भाषाओं को जानने और भूगोल, इतिहास, साहित्य के अलावा दूसरी तमाम जानकारी होनी चाहिऐ.बेहतर घुमक्कड़ होने के लिए फोटोग्राफी और चिकित्सा की जानकारी आवश्यक है। वे डांस के अलावा बजाने और गाने जैसी कलाओं को सीखने की सलाह देते हैं।
राहुल कहते हैं कि लोक कला, लोक संगीत, लोक नृत्य जैसी कला का उद्देश्य पिछड़े लोगों को अक बेहतर समानता पर आधारित समाज का निर्माण की ओर होनी चाहिऐ.वे यायावर जातियों को लेकर कहते हैं कि यदी जीवन में कोई अप्रिय वस्तु है तो वह मृत्यु नहीं बल्कि मृत्यु का भय है।
घुमक्कड़ के प्रेम प्रसंग पर चर्चा करते हुवे राहुल कहते हैं कि प्रेम पाश में फंसने पर उसकी देखभाल लज्जा और संकोच के बल पर ही हो सकती है। जिस व्यक्ति को अपनी, अपने देश और समाज की इज्जत का ख्याल होता है, उसे कभी भी कोई ऐसा कम नहीं करना चाहिये जिससे उसके देश और समाज को लांछन लगे।
घुमक्कड़ को न तो अमरता का लोभ होना चाहिये और न ही हजारों बरस तक लंबे कीर्ति कलेवर की लिप्सा ही।घुमक्कड़ को मृत्यु से कभी भी नहीं डरना चाहिये। उसने तो यहाँ जन्म लिया है कर्त्तव्य और आत्म सृष्टी के लिए. उसे महान से महान उत्सर्ग करने के लिए तैयार रहना चाहिये।
ashvghosh, कालिदास, रविंद्रनाथ, कुमारजीव, दीपंकर जैसे पंडितों और निकोलस रोरिख जैसे घुमक्कड़ कलाकारों का उदाहरण देते हुये राहुल लेखनी और तूलिका पर भी जोर देते हैं.
राहुल यात्रा के दौरान संचित वस्तु को संग्रालय में देने की बात कहते हैं। घुमक्कड़ के लिए डायरी लिखने की बात भी वे करते हैं। साथ ही वे साल दर साल की डायरी को किसी व्यक्ति के पास नहीं बल्कि संस्था के पास रखने का सुझाव देते हैं। उनका मानना था कि व्यक्ति का क्या ठिकाना, न जाने कब चल बसे, फिर उसके बद उत्तराधिकारी इन वस्तुओं का क्या मूल्य समझेंगे.