2/09/2009
स्लमडाग मिलिनेयर' में हमारी स्टार तो लवलीन टंडन है
पूर्वी दिल्ली के एक संयुक्त परिवार में पली-बढ़ी लवलीन को बचपन से ही थियेटर में बैठ सैकडों लोगों के साथ फिल्में देखना अच्छा लगता है। लार्जर देन लाइफ के अनुभवों को पसंद करने वाली लवलीन को 'हम किसी से कम नही' पसंद है तो 'बंदिनी' और 'साहेब, बीवी और गुलाम' उनकी पसंदीदा फ़िल्म है।
सामाजिकता के ताने-बाने से ख़ुद को काफी नजदीक मानने वाली लवलीन को फ़िल्म 'बेंडिट क्वीन ' इतनी रास आई कि उसने भी फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में दो-दो हाथ करने का निर्णय लिया। उसका मानना है की यह फ़िल्म यथार्थ के काफी करीब था और वह इसी तरह की फ़िल्म के निर्माण से जुड़ना चाहती है। यही कारण रहा को वह 'स्लमडाग मिलिनेयर ' के निर्माण से जुडी क्योंकि कहीं न कहीं यह लोगो को यथार्थ से रूबरू कराता है।
2/07/2009
एक भारतीय का तराना, गाता है पाक
भारत और पाक के बीच क्यों न कितनी भी बंदूकें तन जायें, लेकिन सच्चाई यह है कि जहाँ भारत पाकिस्तान के राष्ट्रीय कवि इकबाल का लिखा तराना 'सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान' गाता है, वहीं पाकिस्तान में एक भारतीय कवि की चार बंद वाली 'ए सरजमीने पाक' जमकर बजाई जाती है।
जब द्विराष्ट्र सिद्धांत के आधार पर देश का बंटवारा हुआ था तो पाकिस्तान के रेडियो पर डेढ़ महीने तक इसी तराने को बतौर राष्ट्रीय गीत सुना जाता था। इसका पहला बंद है;
ए सरजमीने पाक ! जर्रे तेरे हैं आज सितारों से ताबनाक रौशन है कहकशां से कहीं आज तेरी खाक तुन्द्ही हासिदां पे है गालिब तेरा सवाक दामन वह सिल गया जो था मुद्दतों से चाक ।
इसके रचयिता कोई और नही बल्कि प्रोफेसर जगन्नाथ आजाद थे। प्रोफेसर जगन्नाथ आजाद और अल्लामा इकबाल राष्ट्रीय सीमाओं से परे उर्दू जगत में सर्वमान्य हैं। जब जगन्नाथ लाहौर में इकबाल की मजार पर गया तो बड़ी ही भावुक शैली में कुछ अपने दिल के दर्द को बयान किया :
मैं आ रहा हूँ दयारे मजारे गालिब से तेरे मजार पर लाया हूँ दिल का नजराना जदीद दौर का तेरे सिवा कोई न मिला नजर हो जिसकी हकीमाना बात रनदाना सलामी रूमचे असर जदीद तुझ पे सलाम सलाम महरम राज दरूने मयखाना।
प्रोफेसर आजाद ने विश्व के करीब २५ विश्वविद्यालयों में अल्लामा इकबाल और उर्दू साहित्य से सम्बंधित अन्य विषयों पर लेक्चरर दिए। करियर की शुरुआत एक पत्रकार के रूप में हुई और सूचना विभाग के अधिकारी और निदेशक भी रहे।