11/14/2009

मां : रौशन शानू की एक कविता

महज चौदह साल का है शानू, बचपन में शरारती था और आज भी मैं उसे इतना ही शरारती मानता हूँ। इन दिनों पूर्णिया में रहता है, पढ़ाई में होशियार है, फिल्मी गानों पर कार में बैठकर डांस करता है, अपनी बहनों और दोस्तों से साथ नाटक भी करता है। निर्देशक, मंच संचालक के साथ-साथ एक साथ अभिनय भी करता है। यह अलग बात है उसका स्टेज और कुछ नहीं घर में पड़ी चौकी या घर का बरामदा होता है। उसकी अपनी जिन्दगी सहित आसपास की हलचलें काफी प्रभावित करती है, और भावुक तो वह है ही। उसकी डायरी में एक कविता मिली जिसे उसने माँ पर लिखा है।...विनीत उत्पल

मा, तुमने मुझको छोड़
पूरी की जिंदगी की होड़
करता हूं गुस्ताखी माफ
जाना पड़ता है तेरे खिलाफ

मां, तुम आती हो मुझको याद
क्या है अब मेरी औकात
अपने कामों से फरियाद
हर क्षण करता वाद-विवाद

मां, मैं क्या कहूं तुमको
तुम तो जानती हो मुझको
जब हुआ तेरा मुझे आभास
बूंदों से भरा था आकाश

मुझे हुआ न कुछ बरदास्त
आखिर कहां मेरी थी याददास्त
वह हादसा था या कोई सदमा
जिसके कारण हुआ मुकदमा

मां, तुम कुछ कह न रही हो
अपने इरादों में सही हो
क्या हुआ था तुम्हारे साथ
किसने छुड़ाया था मेरा हाथ

मेरे भाग्य में लिखा था क्या
जिसके कारण मिली मुझे सजा
तुम मेरी बातों को मान या न मान
लेकिन तुम मुझको पहचान।
रौशन शानू

1 comment:

NISHEETH KAVI said...

Roshan Shanu bahut sundar ma ke roop ko koi bachcha hi samajh aur vivechit kar sakta hai hum bade to maya moh men aisa doobe hain ki sab bhool chuke hain.
Umeshwar Dutt"Nisheeth"
www.nisheethkavi.blogspot.com