10/13/2011

'नए समय में मीडिया' पर लेख आमंत्रित


बदलते वक्त के साथ मीडिया का स्वरूप भी बदलता जा रहा है। भाषा, कंटेंट, प्रजेंटेशन, ले आउट से लेकर विज्ञापन और मार्केटिंग तक में बदलाव आया है। अखबार से लेकर 24X7 समाचार चैनलों तक खबरों से खेलने में माहिर हो गए हैं। आकाशवाणी से लेकर एफएम चैनलों ने संचार माध्यम के विकल्पों को व्यापक किया है तो सीटिजन जर्नलिज्म से लेकर सोशल मीडिया ने तो मीडिया की परिभाषा ही बदलकर रख दी है। वेब मीडिया से लेकर सोशल मीडिया नए इतिहास को लिखने में अग्रसर हो रहा है और अपनी उपयोगिता साबित कर रहा है। हाल के दिनों में दुनिया के तमाम कोनों में जिस तरह के जन आंदोलन हुए, उसमें फेसबुक, ट्विटर, यू-ट्यूब, आर्कुट जैसे तमाम सोशल नेटवर्किंग साइट्स की भूमिका अहम रही। ब्लॉग पर नित नई कहानियां लिखी जा रही हैं। जनतांत्रिक मूल्य व्यापक हो रहे हैं। फिल्मों में भी बदलाव साफ-साफ दिख रहा है. 
नए दौर का मीडिया काफी शक्तिशाली हो चुका है तो विज्ञापन का दवाब संपादकीय टेबुल पर पड़ने लगा है। पेड न्यूज से लेकर पीआर कांसेप्ट ने खबरों के चुनाव को बदलने का काम किया है और पाठकों/ दर्शकों को पता ही नहीं होता कि उनके सामने जो खबरें रखी गई हैं, वह वास्तव में खबर है या किसी पीआर एजेंसी की रपट। राडिया मामला सामने आ चुका है। पेड न्यूज पर संसद में बहस हो चुकी है। किसानों की आत्महत्या कर खबरें सुर्खियां नहीं बनती। सोशल मीडिया पर अंकुश लगाने के लिए विभिन्न देशों की सरकारें एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। 
मीडिया अध्ययन के मामले में विदेशों को छोड़ दें तो भारत के विभिन्न विश्वविद्यालय में मीडिया में समान कोर्स के सिलेबस तक अलग-अलग हैं। संस्थानों में जो पढ़ाया जाता है, प्रैक्टिल लेवल पर छात्रों को उससे कम ही वास्ता पड़ता है। पत्रकारों और संपादकों को काम करने के घंटे अनिश्चित हैं। महिला पत्रकारों के शोषण का मामला अकसर यहां-वहां उठता दीखता है। बीबीसी और सीएनएन जैसे चैनलों में बुजुर्ग एंकर बखूबी समाचार पढ़ रहे होते हैं जबकि भारत में सुंदर महिला एंकर की डिमांड है। मीडिया में नौकरी की कोई सिक्योरिटी नहीं होती। मीडिया संस्थान का कारोबार पिछले दो दशक में जितना बढ़ा है, उतना कर्मचारियों का वेतन नहीं। भाषाई पत्रकारिता हर तरफ छा रही है।
वक्त का तकाजा है कि नए समय की मीडिया और इसके हालात, इसके कारोबार पर विचार-विमर्श किया जाए। मीडिया की अंदरूनी और बाहरी हालातों पर नजर रखी जाए जिससे वस्तुस्थिति सामने आए। आंकड़ों के खेल को भी समझा जाए। इसी के मद्देनजर त्रैमासिक पत्रिका 'पांडुलिपि" अपने नए आयोजन में 'मार्च-मई,२०१२' अंक को 'नए समय में मीडिया"पर केंद्रित कर रहा है। इसके लिए आप आलेख, शोधपरक/विमर्शात्मक आलेख, समीक्षा, साक्षात्कार, कार्टून, परिचर्चा, विदेशी मीडिया, सिटीजन जर्नलिज्म, वेब पत्रकारिता, वेब साहित्य मसलन कहानी, कविता, उपन्यास आदि 31 दिसंबर, 2011 तक भेज सकते हैं। अपने लेख ई-मेल, डाक, फैक्स तीनों से भेज सकते हैं। इससे इतर मीडिया से संबंधित किसी मुद्दे पर लिखना चाहें तो भी स्वागत है। खास पहलू पर विचार-विमर्श करना चाहें तो कर सकते हैं। पता है:-
विनीत उत्पल
अतिथि संपादक
पांडुलिपि
तीसरा तल, ए-959
जी.डी. कॉलोनी, मयूर विहार फेज-तीन, नई दिल्ली-110096
मो. +91-9911364316
ई-मेल: vinitutpal@gmail.com
http://vinitutpal.blogspot.com/
या
जयप्रकाश मानस
कार्यकारी संपादक
पांडुलिपि
एफ-3, छगमाशिम, आवासीय परिसर, पेंशनवाड़ा, रायपुर, छत्तीसगढ-४९२००१
मो. – +91-9424182664
ईमेल- pandulipipatrika@gmail.com
फैक्स- 0771-4240077

1 comment:

Satish Saxena said...

एक अच्छे लेख के लिए बधाई ....