5/24/2010

ऑनलाइन वोटिंग और यंगिस्तान


इंटरनेट की तकनीक लोकतंत्र के ढांचे को मजबूत करने में किस तरह सहायक हो सकती है, यह काफी गंभीर सवाल है। जब इनकम टैक्स ऑनलाइन भरा जा सकता है, पासपोर्ट के लिए आवेदन किया जा सकता है तो अपने प्रतिनिधि का चुनाव क्यों नहीं किया जा सकता? किसी भी चुनाव में ऑनलाइन वोटिंग करने का अधिकार जनता को मिल जाए तो लोकतंत्र की तस्वीर ही कुछ और होगी। ऑनलाइन वोट डाले जाने पर न तो आम जनता को वोटिंग बूथ पर जाने की जरूरत होगी और न ही किसी बाहुबली का डर ही रहेगा और न ही वोट डालने के लिए लंबी कतार में ही खड़ा रहना पड़ेगा।
आने वाले समय में यदि सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो भारत में गुजरात पहला ऐसा राज्य बन जाएगा, जहां चुनाव में ई-वोटिंग के जरिए लोक प्रतिनिधि चुने जाएंगे। यह देश में पहली बार होगा जब कोई अधिकारिक चुनाव इंटरनेट के माध्यम से वोट डालकर कराए जाएंगे। हालांकि इसकी शुरूआत अक्टूबर में अहमदाबाद में होने वाले निकाय चुनावों से होगी। यदि सब कुछ सफल रहा तो राजकोट, सूरत, भावनगर और जामनगर के स्थानीय चुनावों में भी वोटिंग इसी तरह होगी।
ऑनलाइन वोटिंग की शुरूआत करने के पीछे उद्देश्य उन लोगों को चुनाव प्रक्रिया से जोड़ना है, जो वोट देने के लिए आमतौर पर पोलिंग बूथ तक जाने से बचते हैं या फिर लंबी लाइन के चक्कर में अपना वोट नहीं डालते। हालांकि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि उच्च-मध्य वर्ग के लोग राजनीति पर चर्चा तो बहुत करते हैं, लेकिन मतदान करने से कतराते हैं। इसके अलावा युवा वर्ग भी इस तरह की वोटिंग से खासा प्रभावित होगा क्योंकि वर्तमान दौर में इंटरनेट इन्हें सबसे अधिक लुभा रहा है।
चुनाव आयोग इस प्रकार की वोटिंग में मतदान की गोपनीयता और प्रामाणिकता जैसी चीजों को कायम रखने में भी जुटा है। साथ ही, इस बात पर भी ध्यान दे रहा है कि ऑनलाइन कोई फर्जी मतदान न कर सके। इसके लिए आईटी फर्मों के लिए बोली प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। इंटरनेट वोटिंग सिस्टम भारत जैसे बड़े लोकतांत्रिक देश के लिए खासा मायने रखता है क्योंकि जिन-जिन इलाकों में इसकी पहुंच है वहां आसानी से लोग वोट डाल सकेंगे। पूरी दुनिया में अभी तक विभिन्न संस्थानों में रूटीन कामों में इंटरनेट का प्रयोग और ऑफिसर्स या फिर बोर्ड के सदस्यों के चुनाव के लिए होता रहा है। खासकर अमेरिका, इंगलैंड, आयरलैंड, स्विट्जरलैंड, एसिटोनिया आदि देशों में ई-वोटिंग का प्रयोग धड़ल्ले से होता रहा है।
स्विट्जरलैंड में तो स्थानीय जनमत संग्रह इसके जरिए ही किया जाता है जिसमें वोटर पोस्टल सर्विस के जरिए अपना पासवर्ड पाते हैं। एसिटोनिया में तो स्थानीय और संसदीय चुनावों में अधिकतर लोग ई-वोटिंग के जरिए अपने अधिकार का प्रयोग करते हैं। यही हाल अधिकतर यूरोपियन देशों का भी है। एसिटोनिया में सभी नागरिकों का नेशनल आइडेंटिटी कार्ड है जिसमें माइक्रोचिप लगा है और इसके जरिए वे दुनिया के किसी भी कोने में बैठकर अपने चुनावी अधिकार का प्रयोग कर सकते हैं। हालांकि भारत में भी ‘आधार’ के पूरा होने पर यही कंसेप्ट लागू किया जा सकता है जिसमें नंदन नीलकणि जी-जान से लगे हैं।

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