8/12/2009

निरूपमा का जवाब नहीं

1973 में बतौर भारतीय विदेश सेवा में प्रवेश करने वाली निरूपमा राव देश की ऐसी दूसरी महिला हैं, जो विदेश सचिव बनी। इससे पहले चोकिला अय्यर इस पद को सुशोभित कर चुकी हैं। केरल के मलापुरम जिले से ताल्लुकात रखने वाली निरूपमा की प्राथमिक शिक्षा बेंगलुरू, पुणे, लखनऊ और कुन्नूर में हुई। सेना अधिकारी की बेटी होने के कारण उन्हें बचपन से ही देश के विभिन्न भागों को देखने और समझने का मौका मिला। उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में मराठवाडा विश्वविघालय से स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की है। अभी तक दक्षिण अफ्रीका, जिम्बाब्वे, नेपाल, श्रीलंका और चीन में अपनी सेवाएं दे चुकीं निरूपमा में शुरूआती दिनों से ही रचनात्मकता क्षमता विघमान थी। कॉलेज के दिनों में वह गाना भी गाती थीं।

गाना गाने के साथ ही गिटार और पियानो बजाने वाली निरुपमा कविता और कहानी भी लिखती हैं,वे ज्वेलरी की शौकीन तो हैं ही उनका ड्रेसिंग सेंस भी गजब का है
वह महज अधिकारी ही नहीं बल्कि बहुआयामी व्यक्तित्व की मालकिन भी हैं। संगीत के अलावा कविता और कहानी लिखने में रूचि रखने वाली निरूपमा गिटार और पियानो भी अच्छा बजाती हैं। वह पश्चिमी शास्त्रीय संगीत में भी दक्ष हैं तो परंपरागत हिन्दुस्तानी और कर्नाटक संगीत में उनकी निपुणता देखते ही बनती है। इतनी व्यस्तता के बावजूद वह लिखना-पढ़ना नहीं छोड़ती। सामान्य कद-काठी वाली निरूपमा की नोटबुक अभी भी कविताओं से भरी रहती हैं। उनकी कविता संग्रह ‘रेन राइजिंग’ 2004 में प्रकाशित हुई, जब वह श्रीलंका में पदस्थापित थीं। उनकी कुछ कविताओं का अनुवाद हाल ही में चीनी भाषा में किया गया है।
अपने साथियों के बीच वह अच्छे ड्रेसिंग सेंस के लिए भी जानी जाती हैं। उनके पास ज्वेलरी का बेहतरीन कलेक्शन है। उनके पति सुधाकर राव कर्नाटक के मुख्य सचिव हैं, कहते हैं कि उनकी सबसे बड़ी विशेषता काम के प्रति समर्पण है। जब वह कुछ करने की ठान लेती हैं तो कोई उनका ध्यान भटका नहीं सकता। वह बताते हैं कि 2008 में मेरे मुख्य सचिव बनने के बाद हमारी मुलाकातें काफी काम हो रही हैं। उनके अक्टूबर 2006 में बीजिंग में पद संभालने से लेकर विदेश सचिव बनने तक सिर्फ एक बार मुलाकात हो सकी है। वह बताते हैं कि उसे या मुझे जब भी मौका मिलता है तो फोन पर बात जरूर होती है और वह बेटों को जरूर फोन करती है।
लोकसभा की पहली महिला अध्यक्ष मीरा कुमार और निरूपमा राव एक ही बैच में भारतीय विदेश सेवा के लिए चुनी गईं थीं, जिसमें निरूपमा राव ने टॉप किया था। दो बेटों की मां निरूपमा को 21 साल की उम्र में विदेश सेवा से जुड़ने वाली व विदेश मंत्रालय की पहली महिला होने का गौरव हासिल है। चीन में राजदूत बनने से पहले बतौर प्रवक्ता दुनिया को खरी-खरी सुनाने के लिए मशहूर रही हैं। वह श्रीलंका की उच्चायुक्त और पेरू में देश की राजदूत रह चुकी हैं। वह मास्को स्थित भारतीय मिशन में भी काम कर चुकी हैं। विदेश मंत्रालय में पूर्वी एशिया मामलों की संयुक्त सचिव भी रह चुकी हैं।

1 comment:

अजित वडनेरकर said...

निरुपमा जी में सचमुच कुछ खास तो है....