8/10/2009

मुक्कों में है दम: मैरी कॉम

मुक्कों में है दम: मैरी कॉम
अपने मुक्के की बदौलत दुनिया को घुटने टेकने के लिए मजबूर करने वाली मैरी कॉम को राजीव गांधी खेल रत्न से सम्मानित किए जाने के बाद सुर्खियों में है। पद्मश्री और अर्जुन अवार्ड से सम्मानित हो चुकी दो बच्चों की मां मैरी कॉम पहली ऐसी महिला बॉक्सर है जिसने लगातार तीन साल तक अमेरिका में आयोजित वर्ल्ड टाइटल का खिताब जीता। मणिपुर की राजधानी इंफाल के पास छोटे से गांव से ताल्लुक रखने वाली मैरी कॉम गरीबी से लगातार लड़ाई लड़ी है और इस कारण उन्हें विश्व स्तरीय प्रशिक्षण तक हासिल नहीं हो सका।
जब वह स्कूल में थी तो सभी शिक्षक उसकी काबिलियत और जोश का लोहा मानते थे क्योंकि तब वह स्कूल की एथलीट हुआ करती थी। उसने 1999 में बतौर प्रोफेशनल एथलीट को अपनाया। जब उसने और लड़कियों को बॉक्सिंग की ट्रेनिंग लेते देखती तो वह इस आ॓र आकर्षित होती। वह मणिपुर के बॉक्सर डिंको सिंह से प्रदर्शन से काफी प्रभावित होती थी। आखिरकार उसने बॉक्सिंग की ट्रेनिंग लेना शुरू कर दिया और विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू कर दिया।
मैरी कॉम की मेहनत का ही परिणाम था कि वह राज्य व राष्ट्रीय चैंपियन का खिताब अपनी झोली में डाल लिया। इसके बाद उसने इस खेल में कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। मजेदार बात यह है कि बॉक्सिंग में इस मुकाम तक पहुंचने के बाद भी उसकी इस काबिलियत से घर के सभी लोग अंजान थे। उसके पिता को मैरी कॉम की इस रूचि की जानकारी तब मिली जब उन्होंने अखबार में उसकी तस्वीर छपी हुई देखी।
मैरी कॉम ने वर्ल्ड चैंपियन का खिताब जीतकर उन सभी मामलों को झूठ साबित कर दिया कि महिला रिंग में नहीं उतर सकतीं। अपने शुरूआती दिनों को याद करती हुई मैरी कॉम कहती हैं, ‘शुरूआत में मैं ऑलराउंर एथलीट होती थी और चार सौ मीटर दौड़ के साथ-साथ जवेलियन थ्रो मेरा प्रिय स्पर्धा हुआ करता था। लेकिन जब डिंको सिंह बैंकॉक एशियन गेम्स में स्वर्ण लेकर लौटे तो मैंने भी इस खेल में हाथ अजमाने के फैसला लिया।’ उसने 2000 में बॉक्सिंग में आने वाली मैरी कॉम ने महज दो हफ्ते में ही तमाम बारीक चींजें जान लीं। 2000 में पहली राज्य स्तरीय बॉक्सिंग चैंपियनशिप जीतने के बाद उसने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उसी साल उसने सातवीं ईस्ट इंडिया वीमेंस बॉक्सिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता।
2000 से लेकर 2005 तक लगातार राष्ट्रीय चैंपियन रहीं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर द्वितीय एशियन वीमेंस चैंपियनशिप से पहचान कायम करने वाली मैरी कॉम की झोली में कई चैंपियनशिप का खिताब है। वह खुद को फिट रखने के लिए पांच से छह घंटे काम करती है। वह अपने भाई-बहनों को ऊंची तालीम दिलाने के लिए संघर्षरत है। बॉक्सिंग से होने वाले पैसे से जहां वह नया घर खरीदना के सपने को हकीकत में बदलना चाहती है वहीं प्रायोजक की कमी के कारण अपनी स्थिति को लेकर मायूस भी होती है।
विनीत उत्पल

1 comment:

Manish Kumar said...

मैरी कॉम के बारे में इस जानकारी को बाँटने के लिए शुक्रिया !