1/26/2011

विज्ञान का संगीत राग: अश्विनी भिडे


आमतौर पर माना जाता है कि विज्ञान से जुड़े लोग नीरस होते हैं, पढ़ाकू होते हैं और कला-संगीत से उनका कोई वास्ता नहीं होता है। मगर आज के दौर में यह बात गलत साबित होती है। मिसाइलमैन एपीजे अब्दुल कलाम जहां वीणा बजाते थे, वहीं अश्विनी भिडे वैज्ञानिक होने के साथ-साथ संगीतज्ञ भी हैं। उनके अंदर ऐसा मन है जो कभी विज्ञान के गूढ़ फामरूले में रमता था लेकिन संगीत की साधना ने उन्हें अलग मुकाम दिया है। वह पहली महिला संगीतकार हैं जिन्हें मध्य प्रदेश सरकार ने राष्ट्रीय कुमार गंधर्व सम्मान से सम्मानित किया है। जयपुर घराने से ताल्लुक रखने वाली अश्विनी ने मुंबई विश्वविद्यालय से माइक्रोबायोलॉजी में मास्टर डिग्री हासिल की और फिर भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर से बायोकेमिस्ट्री में डॉक्टरेट की डिग्री। विज्ञान को छोड़ संगीत में मन रमाने को लेकर वह कहती हैं कि बचपन से ही संगीत सीख रही थी लेकिन पढ़ाई विज्ञान में कर रही थी, फिर भी विज्ञान में करियर बनाने में ध्यान ही नहीं गया। अपने संगीत के सफर को लेकर वह कहती हैं, ’मैं अपनी मां माणिक भिडे से उपज आहर लयकारी की पारंपरिक गायन सीखी है। मां ही मेरी पहली गुरु रही हैं। रत्नाकर पाई से मैंने अलग-अलग घराने की छोटी-छोटी बातों को सीखा।‘
मुंबई के संगीतज्ञ परिवार में पैदा होने वाली अश्विनी भिडे ने नारायण राव दातार से भी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा प्राप्त की। एक ओर जहां वह विज्ञान की शिक्षा प्राप्त कर रही थी, वहीं गंधर्व महाविद्यालय से संगीत विशारद भी पूरा किया। हालांकि संगीत में करियर बनाने की बात उन्होंने डॉक्टरेट की डिग्री पाने तक सोची भी नहीं थी। यह और बात है कि वह बचपन से ही म्यूजिकल कंसर्ट में जाती रही हैं। 1977 में उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो म्यूजिक कंपीटिशन में प्रेसिडेंट्स गोल्ड मेडल का अवार्ड मिला। हिन्दुस्तानी क्लासिकल वोकल म्यूजिक में उनके योगदान को देखते हुए 2010 में उन्हें सहाद्रि दूरदर्शन संगीत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया। पंडित जसराज के 75वें जन्मदिन पर उन्हें पंडित जसराज गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अश्विनी कहती हैं संगीत का कोई खास रास्ता नहीं होता। यही कारण है कि मैं कबीर, सूरदास और मीरा को एक साथ गाती हूं। वह कहती हैं कि महिलाओं का संगीत के क्षेत्र में आना समय की मांग है। संगीत गहन साधना की मांग करता है। आप बिना तैयारी और सजगता के साथ कभी नहीं गा सकते।

2 comments:

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Anonymous said...

खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है, स्वरों में कोमल निशाद
और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं,
पंचम इसमें वर्जित है, पर हमने इसमें अंत
में पंचम का प्रयोग भी किया है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
..

हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने दिया है.
.. वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.

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