12/20/2010

गंभीर मुद्दे पर भटकती फिल्म

क्षेत्रवाद के आंधी में राजनीति उठापटख खूब होती है लेकिन इसकी शिकार होती है आम जनता। खासकर पिछले कुछ सालों से महाराष्ट्र हो या असम, हर जगह क्षेत्रवाद का बोलबाला रहा। इसे भुनाने में फिल्मकार भी पीछे नहीं रहे। हालांकि यह और बात है कि ऐसी फिल्मों को दर्शकों ने कभी भी हाथोंहाथ नहीं लिया है। ऐसी ही मामले को लेकर कुछ अर्सा पहले फिल्म आई थी 'देशद्रोही"। इसके जरिए कमाल खान ने महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों के संघर्ष को दिखाया था। इसी परंपरा की फिल्म '332-मुंबई टू इंडिया" भी है। 
फिल्म की कहानी सच्ची घटना पर आधारित है, जब 27 अक्तूबर 2008 को पटना के राहुल राज ने मुंबई में बेस्ट की एक बस का अपहरण किया था और जिसे पुलिस ने इनकाउंटर कर मार गिराया था। फिल्म '332-मुंबई टू इंडिया" में कुंठा में जी रहा राहुल अंधेरी-कुर्ला के बीच चलने वाली बेस्ट की डबलडेकर बस का अपहरण करता है और बस की ऊपरी फ्लोर पर मौजूद यात्रियों को बंदी बनाता है। फिल्म में सामानांतर तौर पर बीएचयू के हॉस्टल में रह रहे महाराष्ट्र के लड़के और उसके साथियों के अलावा मुंबई की लड़की और उत्तर भारत के लड़के के बीच के प्रेम-प्रसंग और विवाह की कहानी भी चलती है। लेखक निर्देशक महेश पांडे ने सच्ची और गंभीर विषय पर करीब पौने दो घंटे की फिल्म तो बनाई लेकिन सही तरीके से पूरे मामले को दर्शकों के सामने नहीं रख सके। क्योंकि फिल्म आखिर तक भटकती नजर आती है। पूर्वांचल में मनाए जाने वाले छठ पर्व और टीवी चैनल पर इससे और उत्तर भारतीयों को लेकर दिखाई जा रही खबरें भी फिल्म में अपरोक्ष किरदार के तौर पर दर्शकों के सामने है।
हालांकि उत्तर भारतीय बनाम मराठी विवाद को एक आम आदमी के नजरिए को दर्शाने वाली यह फिल्म है जिसमें आम आदमी सुबह से लेकर शाम तक रोजगार की लड़ाई लड़ता रहता है। मामले की गहराई में उतरने के साथ कुछ ट्विस्ट होता तो बेहतर हो सकता था। हालांकि नए स्टार्स ने काफी मेहनत की है, बावजूद इसके वे दर्शकों को खुद से बांध नहीं पाते। हालांकि बिहार के किसी पिता की बेचैनी और बस में यात्रियों के बेबसी दर्शकों को बखूबी फिल्म से जोड़ने का माद्दा रखते हैं। अंतिम दृश्य में एकता का संदेश देने के लिए ताज पर आतंकी हमले के बाद के परिदृश्य का सहारा लेना लगता है कि निर्देशक की मंशा फिल्म बनाने को लेकर यही दिखाने की थी। गंभीर विषय पर फिल्म बनाने के बाद भी फिल्म में कहीं गंभीरता नहीं है। बहरहाल, आम दर्शकों के मन में यह फिल्म भले ही कौतुहल पैदा न करे लेकिन 'क्षेत्रवाद" के नाम पर रोटी सेंकने वालों के साथ त्रस्त लोगों को आकर्षित करेगी।
फिल्म: '332-मुंबई टू इंडिया"
निर्देशक : महेश पांडेय
कलाकार : अली असगर, चेतन पंडित, विजय मिश्रा, शरबनी मुखर्जी, राजेश त्रिपाठी, हितेन मोंटी 
फिल्म समीक्षा 

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