4/10/2009

संसद में गूंजी है नक्सल की आहट

भारतीय राजनीति में पहली बार १९८९ ऐसा साल आया जब नक्सल आन्दोलन के समर्थक संसद में आए। दिलचस्प है कि नकसली या उनके समर्थकों ने चुनाव मैदान में उतरने के लिए किसी और बैनर का सहारा लिया, क्योंकि केन्द्र सरकार के अलावा विभिन्न राज्य सरकारों ने असली पार्टी पर प्रतिबन्ध लगा दिया था. बिहार के आरा संसदीय क्षेत्र से सीपीआई (एम् एल) (लिबरेशन) के प्रतिनिधि ने इंडियन पीपुल्स के बैनर तले पहली बार जीत हासिल की थी।
नक्सल समर्थक रामेश्वर प्रसाद यहाँ से संसद बने थे। असम से नक्सल आन्दोलन से जुड़े डा जयंत रोंगपी तीन बार संसद की राह देखी है। बिहार के आरा संसदीय क्षेत्र से रामेश्वर प्रसाद ने जनता दल के तुलसी सिंह को हराया। इस चुनाव में उन्होंने 3२.६५ फीसद वोट के साथ जीत दर्ज की थी। रामेश्वर प्रसाद नक्सली आन्दोलन से जुड़े रहे लेकिन उन्हें नक्सली नहीं कहा जा सकता क्योंकि वे कभी कर्पूरी ठाकुर के साथ लोकदल में थे। १९९१ में इंडियन पीपुल्स फ्रंट के बैनर तले फ़िर आरा से खड़े हुए लिकिन हार का सामना करना पड़ा। केन्द्र सरकार ने सीपीआई (एम्एल)( लिबरेशन) से प्रतिबन्ध हटाया तो रामेश्वर प्रसाद आरा संसदीय क्षेत्र से १९९६ और १९९९ में पार्टी के उम्मीदवार बने। २००९ के लोकसभा चुनाव में पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र से पार्टी के उम्मीदवार हैं।
असम के कर्बियांग्लांग संसदीय क्षेत्र से डा जयंत रोंगपी ऑटोनोमस स्टेट डिमांड कमिटी (ऐएसडीसी) के बैनर तले चुनाव लड़ा और जीत हासिल की । हालाँकि सीपीआई (एम्एल) (लिबरेशन) के टिकट पर वे दो बार फ़िर सांसद बने। १९९६ में जहाँ ऐएसडीसी के सदस्यों ने असम विधानसभा की चार सीटों पर अपना कब्जा जमाया वहीं लोकसभा की एक सीट और राज्यसभा की एक सीट पर नक्सल समर्थकों ने कब्जा जमाया।

3 comments:

समयचक्र said...

दिलचस्प रिपोर्ट धन्यवाद.

परमजीत सिहँ बाली said...

जानकारी के लिए धन्यवाद।

संगीता पुरी said...

सुंदर जानकारी दी है ... धन्‍यवाद।