11/15/2008

समय से आगे हैं आईबीएन सेवन के आशुतोष और संजीव पालीवाल

पत्रकार हमेशा अपने समय से आगे की सोचते है और लिखते है। क्या ऐसा सम्भव है की किसी घटना के होने से पहले उसकी स्थिति पर सम्पादकीय लिखा जा सके। जी ऐसा कर दिखाया है आई बी एन सेवन के आशुतोष और संजीव पालीवाल ने।
ओबामा पर लिखे लेखा पर तारीख ६ जनवरी, २००८ की है जो आशुतोष ने लिखा है और संजीव पालीवाल ने जो लेख लिखा है वह दस जनवरी, २००८ को लिखा गया है। जबकि मेरी जानकारी के अनुसार ओबामा ने नवम्बर में अमेरिकी चुनाव जीता है। चाहे यह तकनीकी गलती हो या कुछ और लेकिन मामला मजेदार है। आशुतोष का लेख पढने के लिए क्लिक करें आज की रात...यस वी कैन और संजीव पालीवाल का लेख पढने के लिए क्लिक करें तलाश है भारतीय ओबामा की...
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गुरुवार, जनवरी 06, 2008 19:42s
आज की रात...यस वी कैन
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आज की रात कुछ लिखने को दिल करता है. आज की रात कुछ कहने को दिल करता है . आज की रात कुछ भी नहीं करने को दिल करता है. आज की रात इतनी पूरी है कि कुछ और सोचने को मन नहीं करता है . आज की रात उम्मीदों की रात है. आज की रात बची रहे मेरे सपनों में ये दुआ खुदा से मांगने को दिल करता है. आज ओबामा ने चुनाव जीता है. आज की रात एक सपना जवान हुआ है. आज की रात सपने को भी सपना आया है. आज की रात कहती है अगर कभी ज्यादा भी सोचा होता तो पूरा होता.
आज की रात एन निक्सन कूपर की जिंदगी की सबसे खूबसूरत रात है. आज 106 साल में वो पहली बार चैन की नींद सोयेगी. आज की रात शायद वो सोये ही न क्योंकि आज की रात वो सोचती है कि कभी खत्म ही न हो. आज की रात जेसी जैक्सन की आंखों में एक ख्वाब ने आंसुओं की शक्ल ली है. आज की रात उसकी आंखों का सूनापन शर्मसार नहीं है क्योंकि आज उसका सूनापन ओपरा विनफ्रे के सूनेपन से जा मिला है और दोनों गले लगकर खूब रोएं हैं. ओपरा आज पहली बार बोली है, अब वो अपने शो में और भी बोलेगी क्योंकि आज की रात उसकी जुबान ने मुंह खोला है इस जिदंगी में ये दिन देखूंगी ये सोचा न था. आज की रात मार्टिन लूथर किंग पहली बार मुस्कराया है. आज उसके सपनों की उम्र पूरी हुयी है. अब मार्टिन लूथर किंग ये नहीं कहेगा कि आई हैव ए ड्रीम, क्योंकि अब ओबामा ने कहा है यस, वी कैन.
इस रात एक सभ्यता ने करवट ली है. इस रात एक मसीहा का जन्म हुआ है. इस रात के बाद काला रंग सिर्फ बास्केट बाल की कोर्ट पर ही नहीं खिलेगा. अब व्हाइट हाउस की रात काली भी हुयी तो दुनिया के काले अंधियारों में उजाला पसरेगा. इस रात की सुबह बहुत लंबी होगी. इस रात के बाद काले सफेद दोनों मिलकर खेलेंगे , मुस्करायेंगे और दोनों में कोई भेद नहीं होगा. दुनिया दोनों को देखेगी और दोनों को बाहें पसारे अपने आगोश में समेट लेगी.
इस रात मेरे दोनों पिल्ले भी खूब शोर मचा के खेले हैं. और सोते समय खूब मुस्करा रहे हैं. एक रूमानी सपना दोनों ने देखा था और आज वो सपना पूरा हुआ है, आज वो इंसानों को देखकर उनपर हंस नहीं रहे हैं. आज उनके दिल में इंसानों के लिये इज्जत थोड़ी बढ़ी है. बस बड़े पिल्ले ने सोने से पहले मुझसे हलके से पूछा क्या ये रात अपने यहां भी आयेगी? उसकी बात सुन छोटे ने भी बड़ी उम्मीदों से मेरी तरफ देखा और मैं भी लाजवाब उसकी आंखों में अपने सवाल का जवाब खोजता रहा , फिर चुपके से अपने से बोला जब ये रात अमेरिका में आयी है तो हिंदुस्तान तक भी आयेगी. इस रात ने चलना शुरू कर दिया है. यहां पहुंचते-पहुंचते वक्त तो लगेगा लेकिन आयेगी जरूर ये इस रात का मुझसे वादा है और मैंने भी अपने पिल्लों से चुपके से उन्हें बताये बिना ये वादा किया है. तब ये पिल्ले शायद मुझे कुछ और इज्जत से देखें लेकिन तब तक इंसान इंसान को कमतर तो आंकेगा और रंगों में काला रंग थोड़ा अकेला भी रहेगा और सफेद अपनी नासमझी पर इतरायेगा भी। लेकिन आज की रात ये सोचने का वक्त कहां है. आज की रात तो ओबामा की हां में हां मिलाने की रात है और ये कहने की रात है यस, वी कैन.
पोस्टेड आशुतोष at 19:42s 11 कमेंट्स

और ये ................
सोमवार, जनवरी 10, 2008 13:46s
तलाश है भारतीय ओबामा की...
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डिनर के दौरान अचानक मेरी पत्नी ने कहा कि वो चुनाव लड़ना चाहती है। राजनीति में उतरना चाहती है। मैंने हैरानी से पूछा क्यों ? अचानक ये ख्याल कैसे आया? वो बोली देश का सत्यानाश हो गया है। कोई नेता नहीं है। अमेरिका में अगर ओबामा हो सकता है तो हमारे यहां यंग लोग क्यों नहीं आ सकते। ओबामा ने मुझमें एक उम्मीद जगा दी है कि आम इंसान भी राजनीति में जा सकता है।
मैं वाकई सोचता रह गया कि कैसा है ये ओबामा, जो हजारों किलोमीटर दूर बैठे एक पराये देश में भी उम्मीद जगा रहा है। क्यों उसको देखकर कुछ कर गुजरने का मन करता है। क्यों फिर से सपने बुनने का मन करता है। क्यों वो अपना सा लगता है। क्या महज इसलिये कि उसका रंग हमारे जैसा है, क्या इसलिये कि उसके नाम में हमारी खुश्बू है।
जीत के बाद अपने पहले संबोधन में ओबामा ने कहा कि "ये जवाब युवा, बुजुर्ग, अमीर, गरीब, डेमोक्रेट, रिपब्लिकन, काले, गोरे, हिसपैनिक, एशियन, नेटिव अमेरिकन, गे, लेस्बियन, स्ट्रेट, अपाहिज और जो अपाहिज नहीं है उनका है। अमेरिका के लोगों ने दुनिया को संदेश दिया है..... ये देश महज अलग-अलग तरह के लोगों का संग्रह नहीं है। न ही ये लाल और नीले राज्यों का संग्रह है। हम हमेशा से यूनाईटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका थे और रहेंगे"। ये सुनकर जोश में मैं चिल्लाया था और मुट्ठी हवा में लहरा दी थी। न जाने क्यों ऐसा लगा कि जैसे ये बात हमारे देश के लिये कही गयी हो। लेकिन मैं भारत में रहता हूं, अमेरिका में नहीं। उस दिन भारत की याद आयी थी। उस दिन दिल में एक गहरी टीस उठी थी। पत्नी ने राजनीति में जाने की बात कहकर वो टीस और गहरी कर दी। मेरा देश अमेरिका जैसा क्यों नहीं हो सकता।
नहीं हो सकता हमारा देश अमेरिका जैसा। दरअसल हम अपने देश पर गर्व नहीं करते। देशवासी या भारतवासी होने का अभिमान हमें है ही नहीं। भारत के नाम पर हमारी छाती चौड़ी नहीं होती। हमें भारत की चिंता नहीं होती। भारत के लिये हमारा कलेजा नहीं फटता। भारत के लिये हम कुछ नहीं करते। भारतवासी हम सबसे आखिर में होते हैं। वो चाहे राजनेता हों या उद्योगपति या फिर साधारण नागरिक। हर कोई पहले अपने बारे में सोचता है। जहां मैं और मेरा फायदा हमारी सबसे पड़ी प्राथमिकता हो वो देश तो पीछे छूटेगा ही। सवाल ये है कि कैसे बदलेगी ये विचारधारा। कौन होगा भारत का ओबामा। मायावती, मुलायम सिंह यादव या फिर लालू प्रसाद यादव, राज ठाकरे या फिर नरेंद्र मोदी।
क्या दलितों और पिछड़ों की नुमाइंदगी करने वाला ही कोई भारत का ओबामा होगा ? क्या सिर्फ इसलिये कि ओबामा पहले अश्वेत हैं। यहां ये भी याद रखना होगा कि ओबामा की मां गोरी हैं। उन्होंने सिर्फ बचपन के कुछ साल को छोड़कर हमेशा अपने व्हाईट नाना के साथ जिंदगी गुजारी। लेकिन क्या ओबामा की जीत सिर्फ अश्वेतों की जीत है ? नहीं, ओबामा ने खुद कहा है "सिर्फ उनकी जीत से ही बदलाव नहीं होगा। जीत ने बदलाव लाने का मौका दिया है। पुराने बने बनाये रास्ते पर चलकर बदलाव नही हो सकता। न ही बदलाव आपके (जनता के) बगैर हो सकता है। न ही सेवा की नयी भावना और त्याग के बगैर। तो आईये आज से आगाज करें राष्ट्रवाद की नयी भावना के साथ , नयी जिम्मेदारियों के साथ, जहां हर कोई पूरी मेहनत करते हुए खुद के साथ एक दूसरे का खयाल रखे"।
पर क्या हमारे नेता एक दूसरे का ख्याल रखते हैं ? नहीं। जहां सारी राजनीति वोट बैंक पर होती हो। देश में जब तक दलित हैं, पिछड़े हैं, ब्राह्मण, क्षत्रिय, कायस्थ, जाटव, कुर्मी, गूजर, उत्तर भारतीय, दक्षिण भारतीय रहेंगे, तब तक न सपने देखे जायेंगे, न सपने पूरे होंगे। सपने जातियों और धर्मों के ही रहेंगे। देश का सपना नही होगा। जब तक देश का सपना नहीं होगा, न ओबामा होगा, न मैं दिल से भारतवासी बनूंगा, भारत महज एक शब्द रहेगा और मैं अपने स्वार्थ में जीने वाला एक स्वार्थी नागरिक।
पोस्टेड संजीव पालीवाल at 13:46s 14 कमेंट्स

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