10/24/2007

मीडिया नही धोखा, आप देते ख़ुद को धोखा

आज के दौर में कई लोग मीडिया पैर अनाप शनप लिख ख़ुद को होशियार दिखाने लगे हैं. ना तो उन्हें स्टोरी क्या है वह पता है और ना ही मीडिया की छोटी से जानकारी. लिखंगे ऐसे जैसे सिर्फ़ उन्हें ही सब खुच मालूम हों. ख़ुद तो इतनी हिम्मत नही की अपने संस्थान में उनके साथ जो ग़लत हो रहा हो उसके खिलाफ़ आवाज़ उठा सकँ. और दूसरे को जाम कर उपदेश देंगे. आक ओर जहाँ मीडिया में सीनियर पैसे के खातिर कुछ भी कर लें, लेकिन नाइ पत्रकार को ख़ूब नैतिकता का पाठ पदाएंगे.

सवाल
यह है की मध्यम परिवार का वह युवा जिसने अपने परिवार के लोगों को एक जून की रोटी खाकर पैसे बचा कर उसे पढाई के लिए पैसे भेजते देखा है, वह किस हद तक पत्रकारिता की नैतिकता का ढोल पीटेगा। फिर मीडिया की चका चौंध से कब तक खुद को दूर रखेगा। बरखा दत्त, राजदीप सर देसाई, पुण्य प्रसून वाजपेयी, आशुतोष, देवांग, पंकज पचौरी कब तक इन युवाओं को आकर्षित करेंगे। मीडिया का तिलिस्म उनके आखों के सामने एक न एक दिन टूटेगा।


फिर वही होगे जो धीरे- धीरे दिखना शुरू हो गया है। मीडिया मी काम करने वाली लडकी का एमएमएस सभी के मोबाइल पर होगा, कम नहीं कर पाने का एवज में ऑफिस में बौस की चमचागिरी, घर से हर रोज कुछ बना कर बौस और उनके आसपास के लोगों खो खिलाना, अपने दोस्त को धोखा दे आगे निकलने की कोशिश करना आदि। इसमें सफल नही हुए तो मौत तो अन्तिम उपाय है ही।


ऊँचे सपने देखना अच्छी बात है, लेकिन उसे सही तरीके से पाना यह खास बात है। काबिलियत होगी तो आप लम्बी दौर तक बने रहेंगे, नही तो आने वाले दिन में कोई नाम लेने वाला नही रहेगा। मीडिया के इस तिलिस्मी दुनिया में वही रहेंगे जिसने मन से काम किया हो। काम बोलता है। यही आपकी पहचान है।


ब्रांड बनिए, ब्रांड आपके पीछे भागेगा। चुगलखोरी और चमचागिरी से खुच नही होनेवाला है। अपने कन्धों का सहारा दूसरे को दीजिए, दूसरे के खंधों के सहारे कब तक। कम से कम उसका गला तो मत दबी जिसने जिन्दगी में कभी अपने कन्धों पर आपको बिठाया।

1 comment:

ऋतेश पाठक said...

vinit jee sahi kah rahe hain aap. lekin bhadaas nikaalane ke lie log kuchh to karenge. ek sajjan apane ko kamar vaahid naqvi g kaa mitra bata kar kah rahe the ki naqvi bhi apani duty se frasteted. agar yah sach hai to naye logon kaa kya haal hotaa haoga, andaajaa lagaaya jaa sakataa hai.

aisaa bhi nahi hai ki midia par likhane vaale sabhi nirtaadhar likhate hain ya kisi ko dhokha de rahe hain. taarkik vishayo kaa svagat bhi honaa chaahie.